गोकुल सिंह अथवा गोकुला सिनसिनी गाँव का सरदार था ।जाट वीरों को कट्टरपंथी मुग़ल सम्राटों की असहिष्णु नीतियों का पूर्वाभास हो चुका था । गोकुल सिंह मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन तथा हिंडौन और महावन की समस्त हिंदू जनता के नेता थे तिलपत की गढ़ी उसका केन्द्र थी । मेवाड़ के राणा प्रताप से लड़ने अकबर स्वयं नहीं गया था परन्तु ब्रज के उन जाट योद्धाओं से लड़ने उसे स्वयं जाना पड़ा था । न केवल जाट पुरूष बल्कि उनकी वीरांगनायें भी अपनी ऐतिहासिक दृढ़ता और पारंपरिक शौर्य के साथ उन सेनाओं का सामना करती रहीं । दुर्भाग्य की बात है कि भारत की इन वीरांगनाओं और सच्चे सपूतों का कोई उल्लेख शाही टुकडों पर पलने वाले तथाकथित इतिहासकारों ने नहीं किया । गोकुलसिंह के विरुद्ध किया गया मुग़ल अभियान, उन आक्रमणों से विशाल स्तर का था, जो बड़े-बड़े राज्यों और वहां के राजाओं के विरुद्ध होते आए थे. इस वीर के पास न तो बड़े-बड़े दुर्ग थे, न अरावली की पहाड़ियाँ और न ही महाराष्ट्र जैसा विविधतापूर्ण भौगोलिक प्रदेश. इन अलाभकारी स्थितियों के बावजूद, उन्होंने जिस धैर्य और रण-चातुर्य के साथ, एक शक्तिशाली साम्राज्य की केंद्रीय शक्ति का सामना करके, बराबरी के परिणाम प्राप्त किए, वह सब अभूतपूर्व है.
हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था. पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे, परन्तु वीरवर गोकुलसिंह का तिलपत युद्ध तीसरे दिन भी चला.जाटों का आक्रमण इतना प्रबल था कि शाही सेना के पैर उखड़ ही गए थे, परन्तु तभी हसन अली खाँ के नेतृत्व में एक नई ताजादम मुग़ल सेना आ गयी. इस सेना ने गोकुलसिंह की विजय को पराजय में बदल दिया|जाटों के पैर तो उखड़ गए फ़िर भी अपने घरों को नहीं भागे. उनका गंतव्य बनी तिलपत की गढ़ी जो युद्ध क्षेत्र से बीस मील दूर थी. तीसरे दिन से यहाँ भी भीषण युद्ध छिड़ गया और तीन दिन तक चलता रहा. भारी तोपों के बीच तिलपत की गढ़ी भी इसके आगे टिक नहीं सकी और उसका पतन हो गया.
औरंगजेब ने कहा -
" बोलो क्या कहते हो इस्लाम या मौत?
गोकुल सिंह ने कहा - मौत

राणा प्रताप युद्ध से भाग गया परन्तु वीर गोकुलसिंह नहीं |राजस्थान के सम्मानित एवं पुरष्कृत कविवर श्री बलवीर सिंह ‘करुण’ ने‘ समर वीर गोकुला की भूमिका में लिखा है- ‘महाराणा प्रताप, महाराणा राज सिंह, छत्रपति शिवाजी, हसन खाँ मेवाती, गुरु गोविन्द सिंह, महावीर गोकुला तथा भरतपुर के जाट शासकों के अलावा ऐसे और अधिक नाम नहीं गिनाये जा सकते जिन्होंने मुगल सत्ता को खुलकर ललकारा हो। वीर गोकुला का नाम इसलिए प्रमुखता से लिया जाए कि दिल्ली की नाक के नीचे उन्होंने हुँकार भरी थी और 20 हजार सैनिकों की फौज खडी कर दी थी जो अवैतनिक, अप्रशिक्षित और घरेलू अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित थी। यह बात विस्तार के लिए न भूलकर राष्ट्र की रक्षा हेतु प्राणार्पण करने आये थे। ’
[ राणा प्रताप के पास 5 हजार की सेना थी]
राजपूतो ने अपने इतिहास का खूब प्रचार प्रसार किया |जाटों ने नहीं |
आज मथुरा में गोकुलसिंह की कोई प्रतिमा भी नहीं है| जाट भाईयों से अनुरोध है,इस ओर ध्यान दे|